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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2784
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना- सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- साहित्य में मार्क्सवादी समीक्षा का क्या अभिप्राय है? विवेचना कीजिए।

अथवा
कार्ल मार्क्स की किस रचना से मार्क्सवाद का जन्म हुआ? उसके द्वारा प्रतिपादित द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।

उत्तर -

मार्क्स ने भौतिकवादी सिद्धान्त की प्रतिष्ठा के साथ-साथ समाज, राजनीति एवं अर्थ क्षेत्र के सम्बन्ध में अपने विचार प्रकट किये हैं, साथ ही उसने साहित्य के सम्बन्ध में भी व्यापक एवं गम्भीर रूप से विचार किया है। 'कार्ल मार्क्स की पुस्तक दास कैपिटल' से मार्क्सवाद का जन्म हुआ है।

मार्क्सवादी समीक्षा-सिद्धान्त : इसे प्रगतिवादी समीक्षा-पद्धति भी कहा जाता है- मार्क्स से पूर्व भी बेलिस्की, हर्जन, चर्नोशेब्सकी दो ब्राल्यूबोव आदि चिन्तकों में भी दिखाई देते हैं, किन्तु मार्क्सवाद का जन्मदाता होने के कारण मार्क्स और उसके सिद्धान्तों का प्रमुख व्याख्याता होने के कारण एंगिल्स का नाम ही विशेष उल्लेखनीय है।

मार्क्स का पर्याय साहित्य उपलब्ध है, पर समीक्षा - सिद्धान्त पर कोई कृति उनकी उपलब्ध नहीं है। उनका साहित्य आर्थिक विषमताओं पर आधारित है। उसी में जहाँ-तहाँ साहित्य सम्बन्धी विचारों को भी देखा जा सकता है। मार्क्सवादी चिन्तन बहुत व्यापक है, जिसे सत्यदेव मिश्र ने चार भागों में विभाजित किया है -

(1) द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद
(2) ऐतिहासिक भौतिकवाद
(3) वर्ग संघर्ष का सिद्धान्त
(4) अतिरिक्त मूल्य का सिद्धान्त।

मार्क्सवादी आलोचना का सीधा सम्बन्ध ऊपर के दो सिद्धान्तों से ही है, अतः यहाँ केवल उन दो की ही संक्षिप्त व्याख्या प्रस्तुत करना उचित रहेगा।

द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद : मार्क्स इसे एक सर्वागीण जीवन दर्शन मानते हैं (A World Outlook )। यह दो शब्दों से निर्मित है- द्वन्द्व और भौतिकवाद। इसमें विज्ञान का आधार लेकर पदार्थ की विकास क्रिया को महत्वपूर्ण माना गया है। हीगेल ने प्राणी या चैतन्य विकास की प्रक्रिया का उल्लेख करते हुए स्थिति, प्रक्रिया और समन्वय का उल्लेख किया है।

एंगिल ने इनकी व्याख्या एक उदाहरण द्वारा की। वह उदाहरण था बीज, उसका अंकुरण, फिर उसका पुनः बीज रूप में परिवर्तन होना अर्थात बाली आकर पककर बीज बन जाना। उसने बीज को एक स्थिति ( Thesis) माना बीज का अनेक विपरीत परिस्थितियों में संघर्ष करके अंकुरित होकर पौधे के रूप में बदलना ही प्रक्रिया (Antithesis) कहलाता है। बाली आना, पककर बीज बनना समन्वय (Synthesis) कहलाता है। मार्क्स ने सामाजिक स्तर उसे आर्थिक व्यवस्था के आधार पर स्वीकार किया।

सत्यदेव मिश्र के अनुसार - "मार्क्स के द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद के अनुसार भौतिक जगत की सभी वस्तुएँ तथा घटनाएँ अपने आभ्यान्तरिक विरोध और संघर्ष के कारण द्वन्द्ववादी प्रक्रिया के आधार पर अनवरत रूप से परिवर्तन गामी एवं विकासोन्मुख रहती है।"

ऐतिहासिक भौतिकवाद : आत्मवादी दर्शन यह स्थापित करता है कि मानव संस्कृति के विकास का आधार चेतना की निरन्तर विकास प्रक्रिया है। यह विचारधारा इतिहास-दर्शन की विचारात्मक या आदर्शवादी व्याख्या कहलाती है, जिसे आध्यात्मिक विकासवाद का सिद्धान्त स्वीकार किया जाता है। हीगेल इस मान्यता का समर्थक था।

इस सिद्धान्त के विरोध स्वरूप ही भौतिकवादी सिद्धान्त का सूत्रपात हुआ। इस सिद्धान्त ने अगोचर, आत्मतत्व या सूक्ष्म को अस्वीकार करते हुए गोचर, स्थूल आर्थिक, सामाजिक आदि परिस्थितियों के आधार पर ऐतिहासिक विकास की प्रक्रिया स्वीकार की। इस सिद्धान्त की प्रमुख मान्यताएँ हैं :

(1) विकास का आधार संघर्ष : इतिहास का विकास शान्त एवं सहज रूप में नहीं होता। उसका आधार संघर्ष है अर्थात् संघर्ष सतत् कार्यशील रहता है। यह संघर्ष शान्त भी हो सकता है और क्रान्ति के रूप में रक्त क्रान्ति का रूप भी ले सकता है। संघर्ष का कोई नियम नहीं है। विकास की प्रक्रिया में वह किसी भी रूप में हो सकता है (राजनीतिक, सामाजिक, रीति-रिवाज, नैतिक, आर्थिक, दार्शनिक आदि)।

इस दर्शन की व्याख्या करते हुए एंगिल्स ने मार्क्स की समाधि पर स्पष्ट किया - "मार्क्स का एक महान कार्य मानव इतिहास में विकास के नियम की खोज था, उसने अब तक विचारधाराओं के झाड़- झंखाड़ में छिपे हुए इस सरल तथ्य का पता लगाया था कि मनुष्य जाति को राजनीति, विज्ञान, धर्म आदि का विकास करने से पहले खाने-पीने की, निवास की और कपड़ों की आवश्यकता है। अतएव एक निश्चित समय में, एक निश्चित जाति में जीवन निर्वाह के तत्कालिक भौतिक साधनों का उत्पादन एवं आर्थिक विकास की मात्रा एक ऐसी नीव होती है, जिस पर उस जाति की राज्य-विषयक संस्थाएँ, कानूनी विचार, कला तथा धार्मिक विचार आधारित होते हैं, अतः इसी दृष्टि से उन सब वस्तुओं की व्याख्या की जानी चाहिए।

(2) आर्थिक नियन्त्रण : यह स्वीकार किया गया कि सम्पूर्ण व्यवस्था एवं विकास प्रक्रिया आर्थिक स्थिति द्वारा निर्धारित होती है, क्योंकि यह अर्थ ही उत्पादन का साधन और वितरण व्यवस्था का आधार है। 'भोजन' मनुष्य के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, अतः सर्वाधिक महत्व भोजन उत्पादन पर केन्द्रित रहता है। अर्थ समस्त उत्पादन के साधनों पर और वितरण पर नियन्त्रण रखता है। अतः पूँजीपति इन साधनों को जन्म देता है अतः संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि 'अर्थ' या उस पर एकाधिकार रखने वाला वर्ग सम्पूर्ण राजव्यवस्था, नियम, कानून, सामाजिक, नैतिक, मान्यताओं, नियम यहाँ तक कि धर्म आदि पर नियन्त्रण रखता है। आर्थिक कारणों के आधार पर मानव इतिहास के 5 विभाग किये गये जो निम्नलिखित हैं- 

(1) आदिम साम्यवादी (Premetive Communist )
(2) दास पद्धति काल ( Slave System)
(3) सामन्तवादी व्यवस्था (Tendal System)
(4) पूँजीपति पद्धति (Capital System)
(5) साम्यवाद (Communism )।

उसने यह भी घोषणा की कि पिछले तीन युग समाप्त हो गये, पूँजीवादी युग चल रहा है, साम्यवादी युग आयेगा।

(3) आर्थिक नियन्त्रण जटिल : मार्क्स ने यह भी स्वीकार किया कि आर्थिक नियन्त्रण के माध्यम से विकास की प्रक्रिया सरल नहीं होती। इसे राजनीतिक एवं आर्थिक क्षेत्र में समझना अपेक्षाकृत सरल है, पर धर्म और साहिय के सन्दर्भ में समझना जटिल व्यापार है, अतः इसका अध्ययन सावधानी एवं सतर्कता से करना चाहिए।

(4) विशिष्ट आर्थिक व्यवस्था - इस मान्यता के अनुसार जैसी अर्थ व्यवस्था होगी, वैसा ही दर्शन, संस्कृति और धर्म संस्कारों का स्वरूप बनेगा। उस व्यवस्था के नाम भी अलग-अलग होंगे। यथा सामन्तवाद, पूँजीवाद, समाजवाद, साम्यवाद आदि और इन अलग-अलग व्यवस्थाओं में चिन्तन की पृथकता होने के कारण संस्कृति और साहित्य आदि का रूप भी भिन्न होगा। 

(5) पूँजी का केन्द्रीयकरण - मार्क्स की मान्यता है कि पूँजी की एक सहज प्रवृत्ति है अधिक हाथों से कम हाथों में एकत्रित हो जाना। यह स्थिति समाज में वर्ग उत्पन्न कर देती है - पूँजीवादी वर्ग, पूँजीहीन वर्ग या सर्वहारा। उत्पादन की सारी शक्ति पूंजी में केन्द्रित होने के कारण पूँजीवादी वर्ग को उत्पादक वर्ग और दूसरे को श्रमिक वर्ग कहा जाता है। इस श्रमिक वर्ग को ही 'सर्वहारा वर्ग कहते हैं। स्वाभाविक है कि उत्पादन के समस्त स्रोत पूँजीवादी हाथों में सीमित हैं और इसे ही वर्ग संघर्ष का कारण स्वीकार किया गया।

(6) वर्ग-संघर्ष : वर्ग-संघर्ष आवश्यक है, क्योंकि पूँजी के केन्द्रीयकरण के कारण विषमता बढ़ती है और यह विषमता वर्ग संघर्ष का कारण है। उनकी मान्यता है कि तीव्र एवं व्यापक वर्ग संघर्ष द्वारा ही सर्वहारा वर्ग अपनी जन-शक्ति एवं संगठन शक्ति के कारण, पूँजीपतियों एवं उनकी क्रूर व्यवस्था और उसे बनाये रखने के संघर्ष को परास्त कर सकता है। इसे क्रान्ति कहा जाता है।

(7) मानव कल्याण की भावना - उनका चरम लक्ष्य जन कल्याण है, क्योंकि उनकी धारणा है कि मार्क्सवाद ही ऐसा सिद्धान्त है जो मानवता का कल्याण कर सकता है।

(8) व्यक्ति और समाज : साम्यवाद व्यक्ति को समाज से निरपेक्ष इकाई नहीं मानता। समाज ही व्यक्ति को व्यक्तित्व प्रदान करता है। अतः समाज के सामने व्यक्ति का महत्व गौण है। व्यक्ति के विचार और आदर्श समाज की आर्थिक स्थिति के ही परिणाम हैं। समाज ही भौतिक स्थिति का परिवर्तन चिन्तन की दिशा बदल देता है।

इसके अतिरिक्त भी कुछ ऐसी छोटी-मोटी अनेक प्रवृत्तियों एवं मान्यताएँ हैं, जिनका उल्लेख उनके सिद्धान्त में है। इतने बड़े दर्शन को यहाँ प्रस्तुत करने की सामर्थ्य भी नहीं है। मूल रूप से यह स्वीकार किया जा सकता है कि समाज की सभी व्यवस्थाओं को दर्शन, साहित्य की आर्थिक व्यवस्था पर भी नियंत्रण स्वीकार करते हैं और वह नियंत्रण है- 'उत्पादन' का

एंगिल्स के अनुसार - "इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या के अनुसार इतिहास में अन्तिम रूप से निर्णायक प्रभाव रखने वाला तत्व उत्पादन है। मार्क्स ने और मैंने इससे इतर कुछ नहीं कहा है, परन्तु जब कोई इस कथन को विकृत करके यह कहने लगे कि आर्थिक तत्व ही एकमात्र तत्व है, तो ऐसा कहना पूर्णतः निरर्थक और बेढंगा होगा।'

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- काव्य के प्रयोजन पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- भारतीय आचार्यों के मतानुसार काव्य के प्रयोजन का प्रतिपादन कीजिए।
  3. प्रश्न- हिन्दी आचायों के मतानुसार काव्य प्रयोजन किसे कहते हैं?
  4. प्रश्न- पाश्चात्य मत के अनुसार काव्य प्रयोजनों पर विचार कीजिए।
  5. प्रश्न- हिन्दी आचायों के काव्य-प्रयोजन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए?
  6. प्रश्न- आचार्य मम्मट के आधार पर काव्य प्रयोजनों का नाम लिखिए और किसी एक काव्य प्रयोजन की व्याख्या कीजिए।
  7. प्रश्न- भारतीय आचार्यों द्वारा निर्दिष्ट काव्य लक्षणों का विश्लेषण कीजिए
  8. प्रश्न- हिन्दी के कवियों एवं आचार्यों द्वारा प्रस्तुत काव्य-लक्षणों में मौलिकता का अभाव है। इस मत के सन्दर्भ में हिन्दी काव्य लक्षणों का निरीक्षण कीजिए 1
  9. प्रश्न- पाश्चात्य विद्वानों द्वारा बताये गये काव्य-लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
  10. प्रश्न- आचार्य मम्मट द्वारा प्रदत्त काव्य-लक्षण की विवेचना कीजिए।
  11. प्रश्न- रमणीयार्थ प्रतिपादकः शब्दः काव्यम्' काव्य की यह परिभाषा किस आचार्य की है? इसके आधार पर काव्य के स्वरूप का विवेचन कीजिए।
  12. प्रश्न- महाकाव्य क्या है? इसके सर्वमान्य लक्षण लिखिए।
  13. प्रश्न- काव्य गुणों की चर्चा करते हुए माधुर्य गुण के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
  14. प्रश्न- मम्मट के काव्य लक्षण को स्पष्ट करते हुए उठायी गयी आपत्तियों को लिखिए।
  15. प्रश्न- 'उदात्त' को परिभाषित कीजिए।
  16. प्रश्न- काव्य हेतु पर भारतीय विचारकों के मतों की समीक्षा कीजिए।
  17. प्रश्न- काव्य के प्रकारों का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
  18. प्रश्न- स्थायी भाव पर एक टिप्पणी लिखिए।
  19. प्रश्न- रस के स्वरूप का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  20. प्रश्न- काव्य हेतु के रूप में निर्दिष्ट 'अभ्यास' की व्याख्या कीजिए।
  21. प्रश्न- 'रस' का अर्थ स्पष्ट करते हुए उसके अवयवों (भेदों) का विवेचन कीजिए।
  22. प्रश्न- काव्य की आत्मा पर एक निबन्ध लिखिए।
  23. प्रश्न- भारतीय काव्यशास्त्र में आचार्य ने अलंकारों को काव्य सौन्दर्य का भूल कारण मानकर उन्हें ही काव्य का सर्वस्व घोषित किया है। इस सिद्धान्त को स्वीकार करने में आपकी क्या आपत्ति है? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  24. प्रश्न- काव्यशास्त्रीय सम्प्रदायों के महत्व को उल्लिखित करते हुए किसी एक सम्प्रदाय का सम्यक् विश्लेषण कीजिए?
  25. प्रश्न- अलंकार किसे कहते हैं?
  26. प्रश्न- अलंकार और अलंकार्य में क्या अन्तर है?
  27. प्रश्न- अलंकारों का वर्गीकरण कीजिए।
  28. प्रश्न- 'तदोषौ शब्दार्थों सगुणावनलंकृती पुनः क्वापि कथन किस आचार्य का है? इस मुक्ति के आधार पर काव्य में अलंकार की स्थिति स्पष्ट कीजिए।
  29. प्रश्न- 'काव्यशोभाकरान् धर्मान् अलंकारान् प्रचक्षते' कथन किस आचार्य का है? इसका सम्बन्ध किस काव्य-सम्प्रदाय से है?
  30. प्रश्न- हिन्दी में स्वीकृत दो पाश्चात्य अलंकारों का उदाहरण सहित परिचय दीजिए।
  31. प्रश्न- काव्यालंकार के रचनाकार कौन थे? इनकी अलंकार सिद्धान्त सम्बन्धी परिभाषा को व्याख्यायित कीजिए।
  32. प्रश्न- हिन्दी रीति काव्य परम्परा पर प्रकाश डालिए।
  33. प्रश्न- काव्य में रीति को सर्वाधिक महत्व देने वाले आचार्य कौन हैं? रीति के मुख्य भेद कौन से हैं?
  34. प्रश्न- रीति सिद्धान्त की अन्य भारतीय सम्प्रदायों से तुलना कीजिए।
  35. प्रश्न- रस सिद्धान्त के सूत्र की महाशंकुक द्वारा की गयी व्याख्या का विरोध किन तर्कों के आधार पर किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- ध्वनि सिद्धान्त की भाषा एवं स्वरूप पर संक्षेप में विवेचना कीजिए।
  37. प्रश्न- वाच्यार्थ और व्यंग्यार्थ ध्वनि में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  38. प्रश्न- 'अभिधा' किसे कहते हैं?
  39. प्रश्न- 'लक्षणा' किसे कहते हैं?
  40. प्रश्न- काव्य में व्यञ्जना शक्ति पर टिप्पणी कीजिए।
  41. प्रश्न- संलक्ष्यक्रम ध्वनि को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  42. प्रश्न- दी गई पंक्तियों में में प्रयुक्त ध्वनि का नाम लिखिए।
  43. प्रश्न- शब्द शक्ति क्या है? व्यंजना शक्ति का सोदाहरण परिचय दीजिए।
  44. प्रश्न- वक्रोकित एवं ध्वनि सिद्धान्त का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  45. प्रश्न- कर रही लीलामय आनन्द, महाचिति सजग हुई सी व्यक्त।
  46. प्रश्न- वक्रोक्ति सिद्धान्त व इसकी अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  47. प्रश्न- वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजनावाद के आचार्यों का उल्लेख करते हुए उसके साम्य-वैषम्य का निरूपण कीजिए।
  48. प्रश्न- वर्ण विन्यास वक्रता किसे कहते हैं?
  49. प्रश्न- पद- पूर्वार्द्ध वक्रता किसे कहते हैं?
  50. प्रश्न- वाक्य वक्रता किसे कहते हैं?
  51. प्रश्न- प्रकरण अवस्था किसे कहते हैं?
  52. प्रश्न- प्रबन्ध वक्रता किसे कहते हैं?
  53. प्रश्न- आचार्य कुन्तक एवं क्रोचे के मतानुसार वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजना के बीच वैषम्य का निरूपण कीजिए।
  54. प्रश्न- वक्रोक्तिवाद और वक्रोक्ति अलंकार के विषय में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  55. प्रश्न- औचित्य सिद्धान्त किसे कहते हैं? क्षेमेन्द्र के अनुसार औचित्य के प्रकारों का वर्गीकरण कीजिए।
  56. प्रश्न- रसौचित्य किसे कहते हैं? आनन्दवर्धन द्वारा निर्धारित विषयों का उल्लेख कीजिए।
  57. प्रश्न- गुणौचित्य तथा संघटनौचित्य किसे कहते हैं?
  58. प्रश्न- प्रबन्धौचित्य के लिये आनन्दवर्धन ने कौन-सा नियम निर्धारित किया है तथा रीति औचित्य का प्रयोग कब करना चाहिए?
  59. प्रश्न- औचित्य के प्रवर्तक का नाम और औचित्य के भेद बताइये।
  60. प्रश्न- संस्कृत काव्यशास्त्र में काव्य के प्रकार के निर्धारण का स्पष्टीकरण दीजिए।
  61. प्रश्न- काव्य के प्रकारों का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
  62. प्रश्न- काव्य गुणों की चर्चा करते हुए माधुर्य गुण के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
  63. प्रश्न- काव्यगुणों का उल्लेख करते हुए ओज गुण और प्रसाद गुण को उदाहरण सहित परिभाषित कीजिए।
  64. प्रश्न- काव्य हेतु के सन्दर्भ में भामह के मत का प्रतिपादन कीजिए।
  65. प्रश्न- ओजगुण का परिचय दीजिए।
  66. प्रश्न- काव्य हेतु सन्दर्भ में अभ्यास के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  67. प्रश्न- काव्य गुणों का संक्षित रूप में विवेचन कीजिए।
  68. प्रश्न- शब्द शक्ति को स्पष्ट करते हुए अभिधा शक्ति पर प्रकाश डालिए।
  69. प्रश्न- लक्षणा शब्द शक्ति को समझाइये |
  70. प्रश्न- व्यंजना शब्द-शक्ति पर प्रकाश डालिए।
  71. प्रश्न- काव्य दोष का उल्लेख कीजिए।
  72. प्रश्न- नाट्यशास्त्र से क्या अभिप्राय है? भारतीय नाट्यशास्त्र का सामान्य परिचय दीजिए।
  73. प्रश्न- नाट्यशास्त्र में वृत्ति किसे कहते हैं? वृत्ति कितने प्रकार की होती है?
  74. प्रश्न- अभिनय किसे कहते हैं? अभिनय के प्रकार और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  75. प्रश्न- रूपक किसे कहते हैं? रूप के भेदों-उपभेंदों पर प्रकाश डालिए।
  76. प्रश्न- कथा किसे कहते हैं? नाटक/रूपक में कथा की क्या भूमिका है?
  77. प्रश्न- नायक किसे कहते हैं? रूपक/नाटक में नायक के भेदों का वर्णन कीजिए।
  78. प्रश्न- नायिका किसे कहते हैं? नायिका के भेदों पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- हिन्दी रंगमंच के प्रकार शिल्प और रंग- सम्प्रेषण का परिचय देते हुए इनका संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  80. प्रश्न- नाट्य वृत्ति और रस का सम्बन्ध बताइए।
  81. प्रश्न- वर्तमान में अभिनय का स्वरूप कैसा है?
  82. प्रश्न- कथावस्तु किसे कहते हैं?
  83. प्रश्न- रंगमंच के शिल्प का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  84. प्रश्न- अरस्तू के 'अनुकरण सिद्धान्त' को प्रतिपादित कीजिए।
  85. प्रश्न- अरस्तू के काव्यं सिद्धान्त का विवेचन कीजिए।
  86. प्रश्न- त्रासदी सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
  87. प्रश्न- चरित्र-चित्रण किसे कहते हैं? उसके आधारभूत सिद्धान्त बताइए।
  88. प्रश्न- सरल या जटिल कथानक किसे कहते हैं?
  89. प्रश्न- अरस्तू के अनुसार महाकाव्य की क्या विशेषताएँ हैं?
  90. प्रश्न- "विरेचन सिद्धान्त' से क्या तात्पर्य है? अरस्तु के 'विरेचन' सिद्धान्त और अभिनव गुप्त के 'अभिव्यंजना सिद्धान्त' के साम्य को स्पष्ट कीजिए।
  91. प्रश्न- कॉलरिज के काव्य-सिद्धान्त पर विचार व्यक्त कीजिए।
  92. प्रश्न- मुख्य कल्पना किसे कहते हैं?
  93. प्रश्न- मुख्य कल्पना और गौण कल्पना में क्या भेद है?
  94. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के काव्य-भाषा विषयक सिद्धान्त पर प्रकाश डालिये।
  95. प्रश्न- 'कविता सभी प्रकार के ज्ञानों में प्रथम और अन्तिम ज्ञान है। पाश्चात्य कवि वर्ड्सवर्थ के इस कथन की विवेचना कीजिए।
  96. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के कल्पना सम्बन्धी विचारों का संक्षेप में विवेचन कीजिए।
  97. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के अनुसार काव्य प्रयोजन क्या है?
  98. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के अनुसार कविता में छन्द का क्या योगदान है?
  99. प्रश्न- काव्यशास्त्र की आवश्यकता का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  100. प्रश्न- रिचर्ड्स का मूल्य-सिद्धान्त क्या है? स्पष्ट रूप से विवेचन कीजिए।
  101. प्रश्न- रिचर्ड्स के संप्रेषण के सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
  102. प्रश्न- रिचर्ड्स के अनुसार सम्प्रेषण का क्या अर्थ है?
  103. प्रश्न- रिचर्ड्स के अनुसार कविता के लिए लय और छन्द का क्या महत्व है?
  104. प्रश्न- 'संवेगों का संतुलन' के सम्बन्ध में आई. ए. रिचर्डस् के क्या विचारा हैं?
  105. प्रश्न- आई.ए. रिचर्ड्स की व्यावहारिक आलोचना की समीक्षा कीजिये।
  106. प्रश्न- टी. एस. इलियट के प्रमुख सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए। इसका हिन्दी साहित्य पर क्या प्रभाव पड़ा है?
  107. प्रश्न- सौन्दर्य वस्तु में है या दृष्टि में है। पाश्चात्य समीक्षाशास्त्र के अनुसार व्याख्या कीजिए।
  108. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव तथा विकासक्रम पर एक निबन्ध लिखिए।
  109. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद से क्या तात्पर्य है? उसका उदय किन परिस्थितियों में हुआ?
  110. प्रश्न- साहित्य में मार्क्सवादी समीक्षा का क्या अभिप्राय है? विवेचना कीजिए।
  111. प्रश्न- आधुनिक साहित्य में मनोविश्लेषणवाद के योगदान की विवेचना कीजिए।
  112. प्रश्न- आलोचना की पारिभाषा एवं उसके स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  113. प्रश्न- हिन्दी की मार्क्सवादी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
  114. प्रश्न- हिन्दी आलोचना पद्धतियों को बताइए। आलोचना के प्रकारों का भी वर्णन कीजिए।
  115. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद के अर्थ और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  116. प्रश्न- मनोविश्लेषवाद की समीक्षा दीजिए।
  117. प्रश्न- मार्क्सवाद की दृष्टिकोण मानवतावादी है इस कथन के आलोक में मार्क्सवाद पर विचार कीजिए?
  118. प्रश्न- नयी समीक्षा पद्धति पर लेख लिखिए।
  119. प्रश्न- विखंडनवाद को समझाइये |
  120. प्रश्न- यथार्थवाद का अर्थ और परिभाषा देते हुए यथार्थवाद के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  121. प्रश्न- कलावाद किसे कहते हैं? कलावाद के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिए।
  122. प्रश्न- बिम्बवाद की अवधारणा, विचार और उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  123. प्रश्न- प्रतीकवाद के अर्थ और परिभाषा का वर्णन कीजिए।
  124. प्रश्न- संरचनावाद में आलोचना की किस प्रविधि का विवेचन है?
  125. प्रश्न- विखंडनवादी आलोचना का आशय स्पष्ट कीजिए।
  126. प्रश्न- उत्तर-संरचनावाद के उद्भव और विकास को स्पष्ट कीजिए।
  127. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की काव्य में लोकमंगल की अवधारणा पर प्रकाश डालिए।
  128. प्रश्न- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की आलोचना दृष्टि "आधुनिक साहित्य नयी मान्यताएँ" का उल्लेख कीजिए।
  129. प्रश्न- "मेरी साहित्यिक मान्यताएँ" विषय पर डॉ0 नगेन्द्र की आलोचना दृष्टि पर विचार कीजिए।
  130. प्रश्न- डॉ0 रामविलास शर्मा की आलोचना दृष्टि 'तुलसी साहित्य में सामन्त विरोधी मूल्य' का मूल्यांकन कीजिए।
  131. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की आलोचनात्मक दृष्टि पर प्रकाश डालिए।
  132. प्रश्न- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी की साहित्य की नई मान्यताएँ क्या हैं?
  133. प्रश्न- रामविलास शर्मा के अनुसार सामंती व्यवस्था में वर्ण और जाति बन्धन कैसे थे?

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